Mountains pain- हमारे लिए दर्द झेलते पहाडो की चिंता।

पहाड़ प्रकृति संसाधनों के ही गढ़ नहीं हैं इनके साए में दुनिया की सभ्यता और संस्कृति भी फली फूली है यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने साल का 1 दिन इसके प्रति कृतज्ञता जताने के लिए समर्पित किया है प्रत्येक साल 11 दिसंबर को हम विश्व पर्वत दिवस मनाते हैं दुनिया में 24 फ़ीसदी भूमि पहाड़ी है और यहां संसार की 13 फ़ीसदी आबादी बसती है। 

Himalaya mountain


एक तरफ जहां यह पर्वत बड़े जलागम के रूप में नदियों को जीवन देते हैं जिन पर दुनिया की विशाल आबादी का पालन पोषण टिका हुआ है। तो वहीं खुद पहाड़ों पर बसे जनजीवन को दमदार नहीं कहा जा सकता पहाड़ों की परिस्थिति संरचना दुनिया के लिए तो जीवनदाई है। मगर यह स्वयं तमाम कष्ट को झेलते हैं हालांकि दुनिया के पास आज भी ऐसे कोई मुकम्मल लेखा-जोखा नहीं है, जो यह बता सके कि पहाड़ों का क्या योगदान है। और इसके बदले में क्या क्या झेलना पड़ता है यही नहीं हमारे पास ऐसी कोई रिपोर्ट भी नहीं जो यह ठीक ठाक बता सके कि बदलती परिस्थितियों में पहाड़ हमारे कितने साथ होंगे? 

Aravali mountain


एक मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया की लगभग 75 फ़ीसदी आबादी पहाड़ी जल पर निर्भर है इनके सिम खंडों के अलावा जिन से जनित नदियों के पानी से खेती-बाड़ी और अन्य क्षेत्रों की आवश्यकताएं पूरी होती हैं संसार के बड़े-बड़े शहर जैसे न्यूयॉर्क, नैरोबी, टोक्यो, रियो नई दिल्ली आदि पहाड़ों के जल पर निर्भर रहे है। दुनिया की कुल ऊर्जा आवश्यकता का पांचवा हिस्सा जल ऊर्जा से आता है‌। इसी तरह जैवविविधता की दृष्टि से भी दुनिया में पहाड़ सबसे ऊपर हैं। जैव विविधता वाले विश्व के 50 फ़ीसदी से ज्यादा हॉट स्पॉट पहाड़ों पर ही है जो अमूल्य जैविक के संपदा को सहेजे हुए हैं रोजगार मुहैया कराने के मामले में भी पहाड़ की अहम भूमिका है फलों व वनस्पति पर आधारित कारोबार के अलावा पर्यटन क्षेत्र के कुल रोजगार में अकेले पहाड़ी पर्यटन की हिस्सेदारी लगभग 20 फ़ीसदी है ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि रोजगार जुटाने में पहाड़ कितनी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं लेकिन पहाड़ आज स्वयं स्वस्थ नहीं कहे जा सकते यहां का हर तीसरा व्यक्ति खाध संकट को जलता है विशाल मैदानी इलाकों को पानी देने वाले ने पर्वत अक्सर अपनी आबादी को पानी से वंचित रखते हैं।

Satpura mountain


दुनिया की पहाड़ी आबादी के पास औसतन 50% से भी कम सुविधाएं हैं, जो मैदानी भूभाग के लोगों को हासिल जलवायु परिवर्तन का सीधा बड़ा असर कहीं दिखाई देता है तो वह पहाड़ ही हैं पिछले 3 दशकों में यहां बड़े बदलाव देखे हैं इनका फसल चक्र काफी प्रभावित हुआ है जलवायु परिवर्तन का यह असर सिर्फ कर्म में बढ़ोतरी से जुड़ा नहीं है बल्कि वर्षा का कुछ रुख यहां अप्रत्याशित रहने लगा है वर्षा आधारित खेती के लड़खड़ा ने के कारण पहाड़ी जनजीवन के सामने संकट बढ़ने लगा है बढ़ते तापमान ऐसे में वर्षा फूलों के कारण फल फूलों के विकास पर बुरा असर पड़ रहा है 

Nilgiri mountain


लेकिन जिस तरह से एक हालिया रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि अंटार्कटिक से तीन अरब टन बर्फ पिघल चुका है। और करीब 3 किलोमीटर क्षेत्र में शैवाल पसर चुका है उससे साफ हो जाता है की हालत अच्छे नहीं है दुनिया के तीसरे ध्रुव पर, जीसे तिब्बती पठार भी कहा जाता है बर्फ के पिघलने की दर काफी बड़ी है एन सी पेपीन के शोध के अनुसार 4000 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ों के ऊपर बर्फ पिघलने की दर कम ऊंचे पहाड़ों की तुलना में 75 फ़ीसदी ज्यादा है और यह सब कुछ बीते दो दशक में हुआ है। गौरतलब है तिब्बती पठार एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियों का जल स्रोत है, यह नदिया करीब डेढ़ अरब लोगों के चल का आधार हैं हमारा परिस्थितिक भविष्य पर्वतों से जुड़ा है इसलिए उसको बचाने की पहल से सब को जोड़ना होगा अपने देश के सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ों में हिमालय, अरावली, विंध्याचल सतपुड़ा, नीलगिरी आदि खास हैं इनकी सामाजिक परिस्थितिकी आर्थिकी आज बेहतर श्रेणी में नहीं गिनी जा सकती इनसे जुड़ी नदियां और वन तेजी से अपने क्षमताएं हो रहे हैं ऐसा ही चलता रहा तो यह पर्वत कल पहाड़ सी समस्याएं खड़ी कर देंगे और तब हमारे पास ने विकल्प होगा नहीं जान बचाने के रास्ते।

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